बूंदी का उत्तराधिकारी संघर्ष
बूंदी के राजा हाडा राव बुद्धसिंह की शादी जयपुर के सवाई जयसिंह की बहन के साथ हुई | 1727 ई तक साले (जयसिंह ) व बहनोई बुद्धसिंह के मध्य अच्छे संबंद रहे | कुछ समय बाद कछवाही रानी से भवानीसिंह नामक बच्चा उत्पन्न हुआ | बुधसिंह ने उसे अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया | जयसिंह ने बुद्धसिंह से पूछा तो बुधसिंह ने जयसिंह से कहा कि मै कभी भी कछवाही रानी के निकट गया ही नहीं अतः यह संतान अवैध है | जयसिंह बुद्धसिंह पर क्रोधित हुआ और उसे सिहासन के हटाने का निश्चये किया |
एक बार बुद्धसिंह अपने राज्य से बहार गया हुआ था, तो पीछे के 19 मई 1730 ई में जयसिंह ने बुद्धसिंह की जगह करवड़ के जागीरदार हाडा सालिम सिंह के द्वितीय पुत्र दलेल सिंह को बूंदी की गद्दी पर बैठाकर बादशाह से भी इसकी स्वीकृति प्राप्त कर ली | 2 वर्ष बाद 1732 में जयसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णा कंवर का विवाह दलेल के साथ कर दिया |
कछवाही रानी अपने पुत्र भवानी सिंह की बूंदी के सिंहासन पर बैठाकर स्वयं शासन करना चाहती थी | जयसिंह ने भवानी सिंह की मरवा दिया तो कछवाही रानी ने अपने सौतेले भाई जयसिंह से नाराज होकर उम्मेद सिंह की बूंदी राजा बनाने का बीड़ा उठाया | कछवाही रानी ने मराठों के मल्हार राव होल्कर और राणोजी सिंधिया को 6 लाख रुपये देकर सहायता के लिए बुलाया | 22 अप्रैल 1734 ई को मराठों ने बूंदी पर अधिकार कर उम्मेद सिंह को वहाँ का राजा बना दिया | कछवाही रानी ने होल्कर को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया |
मराठों के बूंदी से लौटते ही जयसिंह ने पुनः बूंदी पर अधिकार कर दलेल सिंह को बूंदी का शासक बना दिया | उम्मीद सिंह वापस मराठों से मदद माँगने गया |इस बार मराठों ने उसे मदद नहीं दी क्योंकि अब मराठों और जयसिंह के मध्यें अच्छे संबंद बन गए थे |
राजस्थान के आंतरिक मामलों में मराठों का यह प्रथम हस्तक्षेप था |
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