Monday, 21 September 2020

त्रिदलीये संघर्ष / त्रिपक्षीय संघर्ष

 त्रिदलीये संघर्ष 


वत्सराज के समय कन्नौज उतरी भारत का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा था अतः कनौज पर पाल वंश , दक्षिण के राष्ट्रकूट वंश व गुर्जर प्रतिहार वंश के शासकों की नजर थी | कन्नौज को लेकर उक्त तीनों राजवंशो में संघर्ष हुआ जिसे त्रिकोणीय संघर्ष कहते हैं | 
इसका प्रारम्भ वत्सराज ने किया | वत्सराज प्रतिहार जालौर का शासक बना | उस समय अरबी आक्रमणकारी जालौर पर आकर्मण करके जालौर को लूट ते जाते थे , इसी कारन वत्सराज प्रतिहार स्वयं के लिए सुरक्षित स्थान की तलाश में था | 647 ई  लगभग कनौज के शासक हरसवर्धन की मृत्यु के बाद कनौज का शासन लड़खड़ा गया | वत्सराज ने इसका फायदा उठाते हुए कनौज पर आक्रमण कर वहाँ के शासक इंद्रायुध को परजीत कर कनौज को अपने अधिकार में कर लिया | 

यह  बात पाल वंश के शासक धर्मपाल को पसंद नहीं आई और उसने वत्सराज को पराजीत करने के लिए वत्सराज पर आकर्मण कर दिया | इस मुंगेर युद्ध में वत्सराज प्रतिहार विजेता हुए | वत्सराज की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर दक्षिण  राष्ट्रकूट वंश के शासक ध्रुव प्रथम ने जालौर पर आकर्मण किया | इस युद्ध में वत्सराज की पराजय तथा ध्रुव प्रथम की विजय हुई | राधनपुर और वनी डिंडोरी शिलालेखों के पता चलता है कि इस युद्ध में पराजित होकर वत्सराज ने मरुस्थल में शरण ली | 


वत्सराज के समय में उद्योतन सूरी द्वारा "कुवलयमाला ग्रन्थ "की तथा जिनसेन सूरी द्वारा "हरिवंश पुराण "  रचना की गयी | 

WRITTEN BY UDHYOTAN SURI


WRITTEN BY JINSEN SURI






Saturday, 19 September 2020

देबारी समझौता

देबारी समझौता 

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जयपुर उत्तराधिकारी संघर्ष 



मारवाड़ के अजित सिंह , जयपुर के सवाई जयसिंह , तथा मेवाड़ के अमर सिंह द्वितीय के मध्य देबारी नामक स्थान पर देबारी समझौता हुआ | जिसमे अजीतसिंह को मारवाड़ का राजा , जयसिंह को आमेर का राजा तथा अमर सिंह द्वितीय की पुत्री चंद्रकुंवरी की शादी  आमेर के जयसिंह के साथ इस शर्त पर की इनसे उत्पन्न संतान को आमेर का उत्तराधिकारी  घोसित करने की सहमति हुई | 


सवाई जयसिंह ने 1708 ई में चंदरकुंवरि से विवाह किया इस शर्त पर परन्तु उससे पहले 1722 में जयसिंह की खींची रानी सूरज कवर के ईस्वर सिंह उत्पन्न हुआ | बड़ा होने के कारण आमेर का शासक ईश्वर सिंह को बनाना था | 

चंद्रकुँवरि का पुत्र माधो सिंह था | माधो सिंह तथा ईश्वर सिंह के बिच संघर्ष निश्चित हो गया | संघर्ष रोकने के लिए जय सिंह ने 1729 में महाराणा संग्राम सिंह के रामपुरा का पट्टा माधो सिंह की करवा दिया | 

जय सिंह की मृत्यु के बाद 1734 में ईश्वर सिंह आमेर का शासक बना | माधोसिंह रामपुरा की जागीर से असंतुस्ट होकर 1708 की शर्तो के आधार पर आमेर की गद्दी पर दावा रखा | इस प्रकार ईश्वर सिंह तथा माधो सिंह के बिच विवाद उत्पन्न हुआ | 

जिसके तहत राजमहल (टोंक ) तथा बगरू का युद्ध हुआ | 

Friday, 18 September 2020

हुरड़ा सम्मलेन

 17 जुलाई 1734 

मराठों ने जयपुर  (आमेर ) के सवाई जयसिंहपर 1733 ई में आक्रमण  जयसिंह को पराजित किया | जयसिंह  आमेर से मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह के पास जाकर मराठों के विरुद्ध मुकाबला के लिए राजपूतों को इकट्ठा करने की योजना  हेतु सम्मलेन बुलाने की योजना बनाई | सम्मलेन बुलाने  स्थान "हुरड़ा "(भीलवाड़ा )  तय किया गया जो जो पहले मेवाड़ रियासत में था , जबकि वर्तमान में भीलवाड़ा जिले में स्थित हैं | 
सम्मलेन का दिन 17 जुलाई 1734 ई  तथा अध्यक्ष संग्राम सिंह को बनाया गया | जनवरी 1734  में संग्राम सिंह की मृत्यु हो जाने के कारन हुरड़ा सम्मलेन की अधयक्षता मेवाड़ के जगतसिंह द्वितीय ने की | 
हरदा सम्मेलन का आयोजनकर्ता जयपुर का जयसिंह था |  हुरड़ा सम्मेलन में जयपुर  के जयसिंह , बीकानेर के जोरावरसिंह , मेवाड़  महाराणा जगतसिंह द्वितीय , किसनगढ़ के राजसिंह ,बूंदी  दलेल  सिंह , करोली  गोपालसिंह तथा कोटा के दुर्जनसाल सम्मिलित हुए | राजपूतों  आपसी मनमुटाव तथा लालच के कारन यह सम्मेलन असफल  |

बूंदी का उत्तराधिकारी संघर्ष

बूंदी का उत्तराधिकारी संघर्ष 

मराठों का राजस्थान में सर्वप्रथम बूंदी में हुआ

बूंदी के राजा हाडा राव बुद्धसिंह की शादी जयपुर के सवाई जयसिंह की बहन के साथ हुई | 1727 ई  तक साले (जयसिंह ) व बहनोई बुद्धसिंह के मध्य अच्छे संबंद रहे | कुछ समय बाद कछवाही रानी से भवानीसिंह नामक बच्चा उत्पन्न हुआ | बुधसिंह ने उसे अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया | जयसिंह ने बुद्धसिंह से पूछा तो बुधसिंह ने जयसिंह से कहा कि मै कभी भी कछवाही रानी के निकट गया ही नहीं अतः यह संतान अवैध है | जयसिंह बुद्धसिंह पर क्रोधित हुआ और उसे सिहासन के हटाने का निश्चये किया | 
एक बार बुद्धसिंह अपने राज्य से बहार गया हुआ था, तो पीछे के 19 मई 1730 ई में जयसिंह ने बुद्धसिंह की जगह करवड़ के जागीरदार हाडा सालिम सिंह के द्वितीय पुत्र दलेल सिंह को बूंदी की गद्दी पर बैठाकर बादशाह से भी इसकी स्वीकृति प्राप्त कर ली | 2 वर्ष बाद 1732 में जयसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णा कंवर का विवाह दलेल के साथ कर दिया | 
कछवाही रानी  अपने पुत्र भवानी सिंह की बूंदी के सिंहासन पर बैठाकर स्वयं शासन करना चाहती थी | जयसिंह ने भवानी सिंह की मरवा दिया तो कछवाही रानी ने अपने सौतेले भाई जयसिंह से नाराज होकर उम्मेद सिंह की बूंदी राजा बनाने का बीड़ा उठाया | कछवाही रानी ने मराठों के मल्हार राव होल्कर और राणोजी सिंधिया को 6 लाख रुपये देकर सहायता के लिए बुलाया | 22 अप्रैल 1734 ई को मराठों ने बूंदी पर अधिकार कर उम्मेद सिंह को वहाँ का राजा बना दिया | कछवाही रानी ने होल्कर को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया | 
मराठों के बूंदी से लौटते ही जयसिंह ने पुनः बूंदी पर अधिकार कर दलेल सिंह को बूंदी का शासक बना दिया | उम्मीद सिंह वापस मराठों से मदद माँगने गया |इस बार मराठों ने उसे मदद नहीं दी क्योंकि अब मराठों और जयसिंह के मध्यें अच्छे संबंद बन गए थे | 

राजस्थान के आंतरिक मामलों में मराठों का यह प्रथम हस्तक्षेप था | 

त्रिदलीये संघर्ष / त्रिपक्षीय संघर्ष

  त्रिदलीये संघर्ष  वत्सराज के समय कन्नौज उतरी भारत का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा था अतः कनौज पर पाल वंश , दक्षिण के राष्ट्रकूट वंश व गुर्जर ...